Monday, March 31, 2008

तुम पूछते हो कि मैं कब लिखूंगी कविता
पर मैं कैसे लिख पाती कुछ भी क्योंकि
आज तक मैं बस खींचती रही कुछ बेतरतीब
लकीरें अँधेरे के खुरदुरे कागज़ पर
और लिखने को कविता चाहिए था एक उजला
चिकना टुकड़ा तुम्हारी पीठ का जिस पर
कोहनी टिका कर रख देती मैं
कुछ प्रेम, कुछ फूल , कुछ पत्तियां
कुछ हरे तिनके दूब के ,कुछ रोशन जुगनू
कुछ हमारे पागल सपने और फिर लिख देती
एक मुक्क्म्मल कविता तुम्हारे चाँद बदन पर...

Wednesday, March 26, 2008

देर तक सूने आसमान में अकेली
उड़ चुकने के बाद थक चली
उस छोटी आवारा दिल चिड़िया ने
तय किया चैन की साँस लेना
उस अकेले पेड़ की मजबूत शाख
पर बने एक छोटे सुंदर से घोंसले में....