Monday, April 23, 2012

तुम पूछते हो कि मैं कब लिखूंगी कवितापर मैं कैसे लिख पाती कुछ भी क्योंकिआज तक मैं बस खींचती रही कुछ बेतरतीब लकीरें अँधेरे के खुरदुरे कागज़ परऔर लिखने को कविता चाहिए था एक उजला चिकना टुकड़ा तुम्हारी पीठ का जिस परकोहनी टिका कर रख देती मैं कुछ प्रेम, कुछ फूल , कुछ पत्तियां कुछ हरे तिनके दूब के ,कुछ रोशन जुगनू कुछ हमारे पागल सपने और फिर लिख देती एक मुक्क्म्मल कविता तुम्हारे चाँद बदन पर...

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उसकी हथेलियों से रिसता है अब लहू
मेरी मेहंदी में उलझा ली हैं उंगलियाँ उसने..

Sunday, May 10, 2009

खिड़की के पार पसरा चमकीला अँधेरा
और झील के किनारे झूमते सरसराते
ये अधेढ़ ऊँचे लम्बे पेड़ इठलाते
सहलाते खुरदुरी देह
अपनी नयी जवान हरी पत्तियों से...

Wednesday, May 21, 2008

मैंने अपने मन के आँगन में
न्योता धूप तुम्हें ujaale के लिए
और तुम लिए चले आए beeti shaam
आसमां पर ghire उस baadal
की parchaai अपने chehre पर ....

Thursday, April 10, 2008

वो खुशबू तेरी दोस्ती की
दबी पड़ी है तेरे सिरहाने
कभी तो उठेगा तू कमबख्त
महक उठेंगे मेरे वीराने...

Monday, March 31, 2008

तुम पूछते हो कि मैं कब लिखूंगी कविता
पर मैं कैसे लिख पाती कुछ भी क्योंकि
आज तक मैं बस खींचती रही कुछ बेतरतीब
लकीरें अँधेरे के खुरदुरे कागज़ पर
और लिखने को कविता चाहिए था एक उजला
चिकना टुकड़ा तुम्हारी पीठ का जिस पर
कोहनी टिका कर रख देती मैं
कुछ प्रेम, कुछ फूल , कुछ पत्तियां
कुछ हरे तिनके दूब के ,कुछ रोशन जुगनू
कुछ हमारे पागल सपने और फिर लिख देती
एक मुक्क्म्मल कविता तुम्हारे चाँद बदन पर...

Wednesday, March 26, 2008

देर तक सूने आसमान में अकेली
उड़ चुकने के बाद थक चली
उस छोटी आवारा दिल चिड़िया ने
तय किया चैन की साँस लेना
उस अकेले पेड़ की मजबूत शाख
पर बने एक छोटे सुंदर से घोंसले में....