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नीम के साए तले फिर से खिलती मुस्कुराती ....पैंजी....
Sunday, December 16, 2007
बालकनी से झांकता चाँद
मुस्कुराता है मेरी बातों पर
सोच रहा है शायद
कि मैं उसको पाने का
ख्वाब देख कर
सो सकूंगी क्या भला?
1 comment:
Pratik Pandey
said...
कविता अच्छी लगी। उम्मीद है आगे भी बढ़िया कविताएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।
December 17, 2007 at 7:57 AM
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बालकनी से झांकता चाँदमुस्कुराता है मेरी बातों परसो...
आओ और देखो ,मेरा अकेलापनसालता है मन कोसूनापनवो चुप...
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1 comment:
कविता अच्छी लगी। उम्मीद है आगे भी बढ़िया कविताएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।
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