Sunday, December 16, 2007

बालकनी से झांकता चाँद
मुस्कुराता है मेरी बातों पर
सोच रहा है शायद
कि मैं उसको पाने का
ख्वाब देख कर
सो सकूंगी क्या भला?

1 comment:

Pratik Pandey said...

कविता अच्छी लगी। उम्मीद है आगे भी बढ़िया कविताएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।