Sunday, February 24, 2008

मैं तुम्हारी कोई नहीं पर
तुम जाने कौन हो मेरे
कि तुम्हारे बगैर आज
बिना कृष्ण पक्ष के भी
छिपा है चाँद कहीं दूर
कहीं कहीं दिख जाते हैं तारे
झाड़ियों में छुपे जुगनुयों की तरह
ये रात भी मेरी ही तरह चुप -निस्तब्ध
कुछ नहीं बोलती , मेरी किसी का बात का
जवाब नहीं दे रही ....
कितनी ही बातें मन में आती हैं
कहूँ किस से बोलो जरा
नहीं होते जब तुम, बंद कली की
पंखुरियों से हो जातें हैं मेरे होंठ भी
जो तुम आओ तो चाँद खिले, सूर्य उगे
और खिले मेरे होंठों के फूल ....

1 comment:

Kavi Kulwant said...

थोडा लय लाने की कोशिश करो..