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नीम के साए तले फिर से खिलती मुस्कुराती ....पैंजी....
Tuesday, February 19, 2008
सुबह उठते ही अपना चेहरा बदला सा लगा मुझे
निशान अनजानी धड़कनों के मेरी आँखों की दहलीज पर
पीला वसंत आज गुलाबी फागुन सा लग रहा है...
धूप ,तूने क्या उस गुलाबी कांच को पिघलाया था कल...
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phool kabhi murjhaate nahi....muskuraate hain bas...
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सुबह उठते ही अपना चेहरा बदला सा लगा मुझे निशान अनज...
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उसके हाथों से उसके टूटे ख्वाबों के कांच समेट कर र...
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