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नीम के साए तले फिर से खिलती मुस्कुराती ....पैंजी....
Friday, February 22, 2008
बीच रात उठ के टटोला था बिस्तर
उठ के कस के
चूमी
थी तकिये की ठुड्डी
सुबह
उस गुलाब का चेहरा क्यों नीला था....
1 comment:
Kavi Kulwant
said...
इस कविता..नही पंक्तियों में कुछ तो नयापन है..
समझने की कोशिश कर रहा हूँ..
March 26, 2008 at 5:07 AM
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1 comment:
इस कविता..नही पंक्तियों में कुछ तो नयापन है..
समझने की कोशिश कर रहा हूँ..
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