Friday, February 22, 2008

बीच रात उठ के टटोला था बिस्तर
उठ के कस के चूमी थी तकिये की ठुड्डी
सुबह उस गुलाब का चेहरा क्यों नीला था....





1 comment:

Kavi Kulwant said...

इस कविता..नही पंक्तियों में कुछ तो नयापन है..
समझने की कोशिश कर रहा हूँ..