Friday, January 11, 2008

ओये चाँद,

बहुत हुआ

सदियों से

तूने बनाईं

झूठी मूठी

कहानियाँ अपने

चेहरे के दाग को

ले कर कि

कभी धरती की

परछाई है तो ,

कभी तुम्हारे तन पे

जो उबड़ खाबड़ से

पत्थर है उसके निशान ,

बेवकूफ समझ रखा है

क्या मुझको ????

चल बता ,

किस बावरी रात ने

चुपके से चूमा था

तुझको ....

किसके निशान

मणि मेखला से

सजाये भटक

रह है तू.....

सदियों से फिर

उसी रात की तलाश में...

नहीं आएगी अब

वो बावरी दुबारा....

जान ले .....

क्योंकि उसको

तेरे ही ठंडे जहर

ने सुला डाला था...

अब उसकी नींद

तो मत तोड़...

चाँद अपनी

आहट से ...

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