Saturday, January 12, 2008

उम्र फलांगती लड़की
मानती क्यों नहीं
किसी की भी बात
कि उसे दहलीज नहीं
पार करनी चाहिए

दहलीज के पार
कोई नहीं होगा
उसके सपनों की
बाहें थामने को

होंगे पैने नाखून
जो खरोंच देंगे
उसके नरम सपनों को

कोई तो समझाओ
उस जंगली सी
लड़की को ...
कहो उस से कि
मन की आँधियों
को मन में समेटे रहे

अपने सुर्ख बिना
आलता वाले पाँव
देहरी में ही रखे...

बाहर कांटे ही काँटे हैं
चट्टानें, उबड़ खाबड़ रास्ते हैं
ये बेवकूफ लड़की
गिरेगी क्या ...

मुस्कुराती है
उम्र फलांगती लड़की

क्या सोच रही होगी
क्या उसको भी यकीन है
मेरी ही तरह कि
इन सारे भयानक जंगलों
सारे कंकरीले पथरीले
रास्तों के पार

एक ठंडे मीठे
पानी का दरिया
बहता हैं...
जो उसके होंठों पर लगे हर धुएं
को धो पोंछ बहा
ले जायेगा ...
और उसके धूल भरे
उलझे बालों में
अपनी लहरें
पिरोयेगा...

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