Friday, January 25, 2008

नींद के नखरे
बढ़ गए हैं इन दिनों ,
मुँह बिचका के
चली जाती है
और ,
मेरी झूठी खुशियों
का बिस्तर ,
नकली सपनों का
सिरहाना
सुबह तक यूं ही
बिना सलवटों के
बंज़र पड़ा रहता है...



No comments: